संसार मे पहली बार आया शिव तांडव नृत्य कैसे
सूत जी से कहते हैं , ऋषिगण कि , हमने स्कंध के अग्रज गणेश जी का प्रादुर्भाव तो सुन लिया।
अब आप हम लोगों को यह बताएं कि -
शम्भु के (तांडव) - का आरंभ कैसे तथा किस लिए हुआ ?
सूत जी कहते हैं - दारुक नामक एक दैत्य था। तपस्या से पराक्रम प्राप्त करके काला अग्नि के समान वह असुर देवताओं तथा उत्तम द्विजों को पीड़ित करने लगा । तब ब्रह्माजी के साथ सभी देवगण महेश्वरी की स्तुति करने लगे ।
ब्रह्मा ने कहा - हे भगवान ! स्त्री के द्वारा बध उस दैत्य दारूक का संहार करके आप हम लोगों की रक्षा कीजिए । भगवान देवेश ने भगवती गिरिजा से दारूक के बध हेतु प्रार्थना की तब उन देवेश्वरी ने जन्म के लिए तत्पर होकर, शिव के शरीर में अपने सोलहवे अंश में प्रवेश किया ।
इसे देवता आदि कोई भी जान नहीं सके । पार्वती ने शिव के कंठ में स्थित बिष से अपने शरीर को बनाया और काम शत्रु शिव ने अपने तीसरे नेत्र से कृष्ण वर्ण के कंठ वाली कपरदिनी काली को उत्पन्न किया । तब पार्वती की आज्ञा से उन परमेश्वरी काली ने सुराधिपों को मानने वाले असूर दारूक का वध कर दिया ।
काली की क्रोधाग्नि से संपूर्ण जगत व्याकुल हो उठा, उसी समय भगवान शंकर माया से बाल रूप धारण कर काशी के शमशान में रुदन लीला करने लगे ।
उस बालस्वरूप मनुष्य के स्वरूप की को रूप को देखकर उनकी माया से मोहित उन काली ने उन्हें उठाकर अपना स्तन पान कराया । तब वे बाल रूप शिव दूध के साथ उनका क्रोध ही पी गए ।
इस प्रकार क्रोध से से क्षेत्र की रक्षा हुई और भगवती काली मूर्छित हो गई, तब भगवान शिव ने प्रीति की युक्त होकर काली की प्रसन्नता के लिए संध्याकाल में श्रेष्ठ भूतों तथा प्रेतों के साथ तांडव नृत्य किया ।
सम्भु के नृत्यामृतका पान करके परमेश्वरी भी उस श्मशान में सुख पूर्वक नृत्य करने लगी । और योगिनियाँ भी उनके साथ नाचने लगी ।
वहां पर ब्रह्मा , विष्णु ,इंद्र सहित सभी देवताओं ने भगवती काली एवं देवी पार्वती की प्रणाम पूर्वक स्तुति की ।
सूत जी कहते हैं - काली को उत्पन्न करके त्रिनेत्र शिव के चले जाने पर उपमन्यु ने तपस्या द्वारा उनकी पूजा करके अभीष्ट फल प्राप्त किया था।
हर हर महादेव